BA Semester-3 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।

उत्तर -

1. रामः

यहाँ ञव्युत्पत्ति पक्ष में "अथ वदधातुर प्रत्ययः प्रातिपदिकम् " इस सूत्र के द्वारा प्रतिपदिक संज्ञा होती है और व्युत्पत्ति पक्ष में

"कृत्तद्धित समासाश्च" इस सूक्त के द्वारा प्रतिपदिक संज्ञा होती है। "ङयाप्प्रातिपदिकात्, प्रत्ययः परश्च' इन तीनों सूत्रों के अधिकारसे"स्वौजसमौट्छष्टाभ्यांभिस्ङेभ्यस्ङसिभ्यांभ्यसङसोसाम्ङ् योस्सुप्"

इस सूत्र से सु आदि 21 प्रत्ययों की प्राप्ति होती है। परन्तु "हृयेकयोर्द्विवचनैकवचने" के अनुसार प्रथमा विभक्ति के एकवचन में सु प्रत्यय आता है -

राम + सु

इस स्थिति में "उपदेशेऽजनुनासिक इत्" इस सूत्र के द्वारा सु में स्थित उ की इत् संज्ञा और 'तस्यलोप': इस सूत्र से उ का लोप होकर -

राम स्

इस स्थिति में "ससप्मुषोरु" इस सूत्र को स् को रु आदेश हो जाता है -

राम + रु.

इस स्थिति में उकार की इत् संज्ञा तथा लोप होकर -

रामर

इस स्थिति में "विरामोऽवसानम्" से रेफ (र्) की अवसान संज्ञा होकर "खरवसान योर्विसर्जनीयः " सूत्र से रेफ को विसर्ग होकर 'राम' रूप की सिद्धि होती है। (इसी प्रकार अन्य रूपों की सिद्धि में भी इसी प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।)

रामौ

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से प्रथमा विभक्ति के द्विवचन में औ प्रत्यय होता है -

राम + औ

इस स्थिति में 'वृद्धिरेचि' इस सूत्र से वृद्धि प्राप्त होती है। उसे बाधकर 'प्रथमयोः पूर्वसवर्ण': इस सूत्र के द्वारा पूर्व सवर्ण दीर्घ एकादेश प्राप्त होता है। 'नादिचि' इस सूत्र के द्वारा पूर्व सवर्ण दीर्घ का निषेध हो जाता है। तत्पश्चात् 'वृद्धिरेचि' सूत्र से वृद्धि होकर रामौ रूप सिद्ध होता है।

रामाः

प्रादिपदिक संज्ञक राम शब्द से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में जस् प्रत्यय होता है -

राम + जस्

इस स्थिति में चुट् इस सूत्र से ज् की इट् संज्ञा तथा लोप हो जाता है -

राम + अस्

इस स्थिति में 'हलन्त्यम्' सूत्र से होने के पश्चात् 'न विभक्तौ तुस्मा से इत्

 

सकार की इत्संज्ञा प्राप्त होने पर 'विभक्तिश्च' से विभक्ति संज्ञा संज्ञा का निषेध हो जाता है। इस स्थिति में अकः सवर्णे दीर्घः सूत्र से दीर्घ प्राप्त होता है। उसको बाधकर "अतोगुणे" सूत्र से पररूप प्राप्त होता है। पुनश्च उसको भी बाधकर के "प्रथमयोः पूर्वसवर्णः सूत्र से दीर्घ हो जाता है -

रामास्

इस स्थिति में सकार को रुत्व-विसर्ग होकर 'रामा': रूप सिद्ध होता है।

हे राम

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से सम्बोधन के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में सु प्रत्यय आता है -

राम + सु

इस स्थिति में 'एकवचन सम्बुद्धि यस्मात्प्रत्ययविधिस्तदादि प्रत्ययेऽङ्गम् इस सूत्र से की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

 

इस सूत्र से सु की सम्बुद्धि संज्ञा होती है। राम की अंग संज्ञा हो जाती है। तत्पश्चात् सु के उकार -

हे राम + स्

इस स्थिति में एड् हस्वात्सबुद्धेः इस सूत्र के द्वारा सकार का लोप होकर हे रान रूप सिद्ध होता है।

(सम्बोधन का द्विवचन का रूप "हे रामौ" बहुवचन का रूप 'हे रामा': प्रथमा विभक्ति के समान ही सिद्ध करने चाहिए)

रामम्

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में अम् प्रत्यय आता है-

राम + अम्

इस स्थिति में अकः सवर्णे दीर्घः सूत्र से दीर्घ प्राप्त होता है। उसको बाधकर अतो गुणे सूत्र से 'पररूप' प्राप्त हुआ तथा उसको भी बाधकर 'प्रथमयोः पूर्वसवर्ण': सूत्र से पूर्वसवर्ण दीर्घ प्राप्त हुआ। उसको भी बाधकर अमि पूर्वः सूत्र से राम + अम् इस अवस्था में मकारोत्तर अकार से परे का अच् अकार है। अतः पूर्व के पद के स्थान पर पूर्व अकार का रूप होकर राम् अम् = रामम् रूप बनता है।

रामौ

राम शब्द से द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में और प्रत्यय आता है। टकार की 'हलन्त्यम्' सूत्र से इत् संज्ञा तथा 'तस्यलोपः से लोप हो जाता है। शेष सिद्धि प्रथमा द्विवचन के समान ही समझनी चाहिए।

रामान्

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में शस् प्रत्यय होता है -

राम + शस्

इस स्थिति में लशक्वता तद्धिते सूत्र के द्वारा शकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

राम + अस्

इस स्थिति में प्रथमयोः पूर्वसवर्णः से पूर्वसवर्ण दीर्घ हो जाता है।

रामास्

इस स्थिति में तस्माच्छसो न पुंसि इस सूत्र के द्वारा सकार को नकार हो जाता है।

रामान्

इस स्थिति में अटकुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि सूत्र के द्वारा नकार को णत्व प्राप्त होता है। पदान्तस्य' सूत्र से निषेधं होकर रामान् रूप सिद्ध होता है।

रामेण

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द के तृतीया विभक्ति के एकवचन में टा प्रत्यय होता है -

राम + टा

इस स्थिति में टाङसिङसामिनात्स्याः इस सूत्र से टा को इन आदेश हो जाता है -

राम + इन्

इस स्थिति में आदगुणः सूत्र से गुण होकर रामेन् बनता है। तत्पश्चात् अटकुष्वाङनुम्व्यवायेऽपि इस सूत्र से नकार को णकार होकर रामेण रूप सिद्ध होता है।

रामाभ्याम्

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से तृतीया विभक्ति के द्विवचन में भ्याम् प्रत्यय होता है -

राम + भ्याम्

इस स्थिति में 'सुपिच' इस सूत्र से दीर्घ होकर रामाभ्याम् रूप सिद्ध होता है।

रामैः

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में भिस् प्रत्यय होता है -

राम + भिस्

इस स्थिति में 'अतो भिस् ऐस्' इस सूत्र के द्वारा भिस् को ऐस हो जाता है -

राम + ऐस

इस स्थिति में 'वृद्धिरेचि' सूत्र से वृद्धि होती है। और सकार को रुत्व विसर्ग होकर रामैः रूप सिद्ध होता है।

रामाय

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में ङे प्रत्यय होता है -

राम + डे

इस स्थिति में 'डे' : सूत्र से ङे को य आदेश हो जाता है -

राम + य

इस स्थिति में 'स्थानिवदादेशोऽनलविधौ इस सूत्र से स्थानिवत् करके 'सुपिच': सूत्र से दीर्घ होकर 'रामाय' रूप सिद्ध होता है। (रामाभ्याम् रूप की चतुर्थी द्विवचन में भी तृतीया विभक्ति द्विवचन के समान रूप सिद्धि होगी।)

रामेभ्यः

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से पंचमी विभक्ति के बहुवचन में भ्यस् प्रत्यय होता है।

राम + भ्यस्

इस स्थिति में 'बहुवचने झल्येत् इस सूत्र के द्वारा अकार को एकार हो जाता है -

रामे + भ्यस् = रामेभ्यस्

इस स्थिति में सकार को रुत्व विसर्ग होकर रामेभ्यः रूप सिद्ध होता है।

रामात्, रामाद्

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से पञ्चमी विभक्ति एकवचन में ङसि प्रत्यय होता है।

राम + ङसि

इस स्थिति में टाङसिङसामिनात्स्याः इस सूत्र से ङसि को आत् आदेश हो जाता है -

राम + आत्

इस स्थिति में 'अकः सवर्णे दीर्घः' सूत्र से दीर्घ होकर रामात् इस दशा में झलां जशोऽन्ते' सूत्र से जश्त्व तकार के स्थान पर दकार होता है।

'रामाद्' इस स्थिति में 'विरामो' सूत्र से अवसान संज्ञा होने के पश्चात् वाऽवसाने सूत्र से चर्च तकार होकर रामात् रूप बनता है। 

रामाभ्याम

यहाँ पञ्चमी विभक्ति द्वितीया की सिद्धि पूर्वोक्त प्रकार से करनी चाहिए।

रामेभ्यः

पञ्चमी विभक्ति बहुवचन व इसकी सिद्धि चतुर्थी बहुवचन के समान कर लेनी चाहिए।

रामस्य

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में उस प्रत्यय होता है -

राम + इस

इस स्थिति में टाङसिङसामिनात्स्याः इस सूत्र से स् को स्य आदेश होकर रामस्य रूप सिद्ध होता है।

रामयोः

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से षष्ठी विभक्ति के द्विवचन में ओस प्रत्यय आता है

राम + ओस

इस स्थिति में 'ओसि च' इस सूत्र के द्वारा म में स्थित अकार को एकार हो जाता है -

रामे + ओस

इस स्थिति में एचोऽयवायावः सूत्र से अयादेश होकर राम् अय् ओस् = रामयोस् इस दशा में सकार का रुत्व विसर्ग होकर 'रामयो': रूप सिद्ध होता है।

रामाणाम

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में आम् प्रत्यय होता है -

राम + आम

इस स्थिति में 'ह्रस्वनपोनुट्' इस सूत्र के द्वारा नुट् का आगम होता हे नुट् में न् शेष रहता है -

राम + नाम

इस स्थिति में 'नामि' सूत्र के द्वारा दीर्घ हाकर रामानाम् बनता है। 'अटकुप्वाङ्नुमव्यवायेऽपि इस सूत्र के द्वारा नकार को णकार होकर रामाणाम् रूप सिद्ध होता है।

रामे

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में ङि प्रत्यय होता है -

राम + ङि

इस स्थिति में 'लशक्वतद्धिते' सूत्र से ङकार की इत्संज्ञक तथा लोप होकर राम + इ इस दशा में 'आदगुण': सूत्र से गुण होकर रामे रूप सिद्ध होता है।

(रामयो: इस सप्तमी विभक्ति द्विवचन के रूप की सिद्धि षष्ठी विभक्ति द्विवचन के समान करनी चाहिए।)

रामेषु

प्रातिपदिक संज्ञक राम शब्द से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में सुप् प्रत्यय होता है। पकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

राम + सु

इस स्थिति में बहुवचने झल्येत् इस सूत्र के द्वारा अकार को एकार आदेश हो जाता है।

रामे + सु

इस स्थिति में 'आदेश प्रत्ययो: सूत्र से सकार को षकार होकर रामेषु रूप सिद्ध होता है।

राम शब्द की सम्पूर्ण रूपमाला एकवचन

 

विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा राम रामौ रामाः
द्वितीया रामम् रामौ  रामान्
तृतीया रामेण रामाभ्याम्  रामैः
चतुर्थी रामाय रामाभ्याम्  रामेभ्यः
पञ्चमी  रामात्, रामाद् रामाभ्याम्  रामेभ्यः
षष्ठी रामस्य रामयोः रामाणाम्
सप्तमी  रामे रामयोः  रामेषु
सम्बोधन हे राम हे रामौ हे रामाः


2. सर्व :

सर्व - सर्व शब्द से (अर्थवद् धातु धातु प्रत्ययः प्रातिपादिकम्) सूत्र से प्रातिपदिक संज्ञा (स्वाजसमौट्दृष्टा ....) इस सूत्र से प्रथमा बहुवचन में 'जस्' विभक्ति लाये तो सर्वजस् बना (सर्वादीतिसर्वनामानि) सूत्र से सर्वनाम संज्ञा हो गई। (जसः शी) सूत्र से जस् के स्थान पर शी आदेश हो गया, 'स्थानिवदा' सूत्र से स्थानिवद् भाव होने से जसू प्रत्यय का धर्म 'शी' आदेश में आ जाने पर 'लशक्वतद्धिते' सूत्र से शकार भी इत्संज्ञा तथा 'तस्य लोपः' सूत्र से लोप होकर सर्व + ई इस दशा में 'आद् गुणः' सूत्र से होकर 'सर्वे' रूप बनता है।

सर्वस्मै - सर्व शब्द से (अर्थवद्धातुर प्रत्ययः प्रातिपादिकम्) सूत्र से प्रातिपदिक संज्ञा (स्वौजनमौट्छष्टा....) सूत्र से चतुर्थी एकवचन में 'डे' विभक्ति लायें तो सर्वङे बना (सर्वादीनिसर्वनामानि) सूत्र से सर्वनाम संज्ञा (सर्वनाम्नः स्मै) सूत्र से 'डे' के स्थान पर स्मै आदेश हो गया अतः सर्वस्मैः रूप सिद्ध हुआ।

सर्वस्मात् - सर्व शब्द से (अर्थवद्धातुरप्रत्ययः प्रातिषादिकम्) सूत्र से प्रातिपदिक संज्ञा (स्वौजसमौट्छष्टा) सूत्र से पंचमी एकवचन में 'ङसि विभक्ति लायें तो सर्वङसि बना (सर्वादीनि सर्वनामानि) सूत्र से ङसि के स्थान पर स्मात् आदेश हो गया अतः 'सर्वस्मात् रूप सिद्ध हुआ।

सर्वेषाम् - सर्व शब्द से (अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपादिकम्) सूत्र से प्रातिपदिक संज्ञा (स्वौजसमौट्छष्टा....) सूत्र से षष्ठी बहुवचन में आम् विभक्ति लाये तो सर्वआम् बना (सर्वादीनिसर्वनामानि .....) सूत्र से सर्वनाम संज्ञा (आमि सर्वनाम्नः सुट्) सूत्र से सुट् का आगम हो गया तो 'सर्वसुट् आम्' ऐसा बना। उ और ट् की इत्संज्ञा तथा लोप होने पर सर्वसाम् बना (बहुवचने -) सूत्र से अ का ए हो गया अतः 'सर्वेषाम्' रूप सिद्ध हुआ।

सर्वस्मिन् - सर्व शब्द से (अर्थवद्धातुरप्रत्ययः प्रातिपादिकम्) सूत्र से प्रातिपदिक संज्ञा (स्वौजसमौट्छष्टा...) सूत्र से सप्तमी एकवचन में 'ङि' विभक्ति लाये (सर्वादीनि सर्वनामानि) इस सूत्र से सर्वनाम संज्ञा (ङसिङ्योः स्मात्स्मिनौ) सूत्र से ङि के स्थान पर स्मिन् आदेश हो गया अतः 'सर्वस्मिन्' रूप सिद्ध हुआ।

सर्व शब्द की सम्पूर्ण रूपमाला

विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सर्वः सर्वो सर्वे
द्वितीया सर्वम् सर्वो  सर्वान्
तृतीया सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वोः
चतुर्थी सर्वस्मै सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः
पञ्चमी  सर्वस्मात् सर्वाभ्याम् सर्वेभ्यः
षष्ठी सर्वस्य सर्वयोः सर्वेषाम्
सप्तमी  सर्वस्मिन् सर्वयोः सर्वेषु
सम्बोधन हे सर्व ! हे सर्वो ! हे सर्वे !

 

3. हरि:

प्रातिपदिक संज्ञक हरिः शब्द से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में सु प्रत्यय आता है -

हरि + सु

इस स्थिति में उकार की संज्ञा तथा लोप होकर-

हरि + स्

इस स्थिति में "ससजुषोरु: : इस सूत्र के द्वारा सकार को रु आदेश होता है -

हरि + रु

इस स्थिति में उकार की इतसंज्ञा तथा लोप होकर

हरि + र्

इस स्थिति में "खरवसान योर्विसर्जनीयः" इस सूत्र के द्वारा रेफ को विसर्ग होकर हरिः रूप सिद्ध होता है।

हरी

यहाँ प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से प्रथमा विभक्ति के द्विवचन में और प्रत्यय होता है -

हरि + औ

इस स्थिति में "प्रथमयोः पूर्वसवर्ण: " इस सूत्र के द्वारा दीर्घ होकर हरी रूप की सिद्धि होती है।

हरयः

यहाँ प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में जस् प्रत्यय आता है

हरि जस्

इस स्थिति में जकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

हरि + अस्

इस स्थित में "जसि च' इस सूत्र के द्वारा इ को गुण ए हो जाता है -

हरे + अस्

इस स्थिति में 'एचोऽयवयाव:' इस सूत्र के द्वारा ए को अय् आदेश होकर -

हरयस्

यह स्थिति होती है। सकार को रुत्व और विसर्ग होकर हरयः रूप सिद्ध होता है

हरे

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से सम्बोधन एक वचन में सु प्रत्यय आता है -

हरि + सु

इस स्थिति में 'एकवचनं सम्बुद्धि: इस सूत्र के द्वारा सम्बुद्धि संज्ञा होकर ह्रस्वस्य गुणः इस सूत्र के द्वारा इकार को गुण एकार हो जाता है-

हरे + सु

इस स्थिति में “एङह्रस्वात् सम्बुद्धै" इस सूत्र के द्वारा सु को लोप होकर हरे रूप सिद्ध होता है।

हरिम्

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में अम् प्रत्यय होता है -

हरि + अम्

इस स्थिति में 'अमि पूर्व: सूत्र से पूर्व रूप होकर 'हरिम् रूप' सिद्ध होता है।

हरी

यहाँ हरि शब्द से द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में और प्रत्यय होता है। टकार की इत्संज्ञा और लोप हो जाता है। शेष रूप सिद्धि प्रथमा विभक्ति के द्विवचन के समान होती है।

हरीन्

यहाँ प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में शस् प्रत्यय होता है -

हरि + शस्

इस स्थिति में सकार की इत्संज्ञा तथा लोप होता है

हरि + अस्

इस स्थिति में प्रथमयोः पूर्व सवर्ण: इस सूत्र के द्वारा दीर्घ होता है -

हरीस

इस स्थिति में " तस्माच्छसो नः पुंसि" इस सूत्र के द्वारा सकार को नकार होकर हरीन् बनता है। इस स्थिति में "अट् कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि इस सूत्र के द्वारा णत्व प्राप्त होता है। पदान्तस्य सूत्र से णत्व का निषेध होकर हरीणन् रूप सिद्ध होता है।

हरिणा

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से तृतीया के एकवचन में टा प्रत्यय आता है.

हरि + टा

इस स्थिति में "शेषो ध्यसाखि" इस सूत्र के द्वारा हरि शब्द की धि संज्ञा हो जाती है।

'आङोनाऽस्त्रियाम्'

इस सूत्र के द्वारा टा को ना आदेश हो जाता है -

हरि + ना

इस स्थिति में "अटकुप्वाडनुम्व्यवायेऽपि " इस सूत्र के द्वारा णत्व होकर हरिणा रूपसिद्ध होता है।

हरिभ्याम्

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से भ्याम् प्रत्यय होकर हरिभ्याम् रूप सिद्ध होता है।

हरिभिः

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में भिस् प्रत्यय होता है। सकार को रुत्व विसर्ग होकर हरिभिः रूप सिद्ध होता है।

हरये

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में डे प्रत्यय आता है -

हरि + डे

इस स्थिति में ङकार की इत्संज्ञा तथा लोप होकर ए शेष रहता है

हरि + ए

इस स्थिति में 'शेषो ध्यसखि इस सूत्र के द्वारा हरि शब्द की धि संज्ञा होती है। "धेर्डिति" इस सूत्र से द्वारा एकार को गुण एकार अरे + ए इस स्थिति में 'एचोऽयवायान: इस सूत्र से ए को अय् आदेश होकर हरये रूप सिद्ध होता है।

हरे:

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से पंचमी विभक्ति के एकवचन में ङसि प्रत्यय आता है-

हरि + सि

इस स्थिति में ङकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है -

हरि + अस्

इस स्थिति में "शेषो ध्यसखि " सूत्र के द्वारा हरि की विधिसंधा होती है। येर्द्धिति इस सूत्र से इंकार को गुण एकार हो जाता है-

हरे + अस्

इस स्थिति में ङसिङसोश्च इस सूत्र के द्वारा पूर्व रूप एकादेश होकर हरेस् बनता है। सकार को रुत्व विसर्ग होकर 'हरे': रूपसिद्ध होता है।

इसी प्रकार षष्ठी विभक्ति के एकवचन में इस प्रत्यय आता है। शेष कार्य पञ्चमी विभक्ति के एकवचन के समान होते हैं।

हर्योः

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से षष्ठी विभक्ति के द्विवचन में ओस प्रत्यय आता है -

हरि + ओस्

इस स्थिति में 'इकोयणचि" सूत्र से इकार को यण यकार होकर हर्योस् बनता है। सकार को रुत्व विसर्ग होकर हर्योः रूपसिद्ध होता है। (सप्तमी विभक्ति के द्विवचन में भी हर्यो: रूप बनता है।

हरीणाम्

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में आम् प्रत्यय आता है-

  हरि + आम्

इस स्थिति में " ह्रस्वनद्यापो नुट्" इस सूत्र से नुट् का आगम होता है। उट् की संज्ञा तथा लोप हो जाता है -

हरि + न् + आम्

इस स्थिति में "अटकुप्नाङनुष्व्यवयेऽपि इस सूत्र के द्वारा णत्व होकर हरिणाम् रूपसिद्ध होता है।

हरौ

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में ङि प्रत्यय आता है.

हरि + ङि

इस स्थिति में ङकार की इत् संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

हरि + इ

इस स्थिति में शेषोध्यसखि" इस सूत्र के द्वारा हरि की धि संज्ञा होती है। "अच्च् हो: " इस सूत्र के द्वारा ङि को औत् = और आदेश हो जाता है तथा हरि शब्द के इकार को अकार आदेश हो जाता है -

हर + औ

इस स्थिति में "वृद्धिरेचि' सूत्र से वृद्धि होकर हरौ रूप सिद्ध होता है।

हरिषु

प्रातिपदिक संज्ञक हरि शब्द से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में सुप् प्रत्यय होता है।

हरि + सुप्

इस स्थिति में पकार की संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

हरि + सु

इस स्थिति में "आदेश प्रत्यययोः " इस सूत्र से दन्त्यसकार को मूर्धन्य षकार होकर हरिषु रूप सिद्ध होता है।

(इसी प्रकार कवि शब्द के रूपसिद्ध होते हैं।)

हरि शब्द की रूपमाला

विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा हरिः हरि   हरयः
द्वितीया हरिम् हरी हरीन्
तृतीया हरिणा हरिभ्याम् हरिभिः
चतुर्थी हरये हरिभ्याम् हरिभ्यः
पञ्चमी  हरे: हरिभ्याम् हरिभ्यः
षष्ठी हरे: हर्यो: हरीणाम्
सप्तमी  हरौ हर्यो: हरिषु
सम्बोधन हे हरे हे हरी हे हरयः

 

साधु शब्द की सम्पूर्ण रूपमाला

विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा साधुः साधू साधव:
द्वितीया साधुम् साधू साधून्
तृतीया साधुना साधुभ्याम् साधुभिः
चतुर्थी साधवे साधुभ्याम् साधुभ्यः
पञ्चमी  साधोः साधुभ्याम् साधुभ्यः
षष्ठी साधोः साध्वोः साधूनाम्
सप्तमी  साधौ साध्वोः साधुषु
सम्बोधन हे साधो ! हे साधू ! हे साधवः !

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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